मिखाइल शोलोखोव वाक्य
उच्चारण: [ mikhaail sholokhov ]
उदाहरण वाक्य
- ऊबड़-खाबड़ शब्दों का असॉर्टमेण्ट और अपने को मिखाइल शोलोखोव से सटा रहे हो!
- मैं मिखाइल शोलोखोव, बंगला के ताराशंकर बंधोपाध्याय और सतीनाथ भादुड़ी तथा प्रेमचंद को अपना आदर्श और प्रेरक मानता हूँ.
- यहाँ तक कि मिखाइल शोलोखोव जैसे लेखक-नेता ने सार्वजनिक रूप से हाथ मले कि सोल्झेनित्सिन जैसा ‘जिद्दी कीड़ा ' यातना-शिविरों से जीवित क्यों बच कर आ गया!
- रूस में मक्सिम गोर्क ी, चेखव और मिखाइल शोलोखोव जैसे रचनाकारों का जन्म ही इसलिए हो सक ा, क्योंकि उनके पीछे तोल्स्तो य, इवान तुर्गनेव और निकोलाई चेर्नीश्वेस्की जैसे लेखकों की सुदृढ़ विरासत थी।
- तब क्या था जिस ने सोवियत कम्युनिज्म की चूल हिला दी? यहाँ तक कि मिखाइल शोलोखोव जैसे लेखक-नेता ने सार्वजनिक रूप से हाथ मले कि सोल्झेनित्सिन जैसा ‘ जिद्दी कीड़ा ' यातना-शिविरों से जीवित क्यों बच कर आ गया! सोल्झेनित्सिन के लेखन की शक्ति इस बात में थी कि उस ने सोवियत व्यवस्था की अमानवीयता और पाखंड को मानो एक विराट् आईने में उतार दिया था।
- एक बार एक बालसुलभ मन, अपनी पुश्तैनी हवेली के पुस्तकालय में पुरानी किताबों को टटोल रहा था, मिखाइल शोलोखोव की एक किताब उसके हाथ लगी, किताब का तो याद नहीं पर उसमें लिखी एक पंक्ति उसके मानस पटल पर सदा के लिए अंकित हो गई, ‘‘मानव की मुक्ति के लिए संघर्श करने वालों को बचपन से ही पुस्तकों के प्रति गहरा अनुराग होता है।‘‘ समय आखिर समय होता है, सूरज और चांद की लुखाछिपी के बीच बचपन का दौर निकल गया, बालसुलभ मन पर किशोरमय चंचलता और जिद छा गई।
- विक्षोभ जीवन की धूप एक बार एक बालसुलभ मन, अपनी पुश्तैनी हवेली के पुस्तकालय में पुरानी किताबों को टटोल रहा था, मिखाइल शोलोखोव की एक किताब उसके हाथ लगी, किताब का तो याद नहीं पर उसमें लिखी एक पंक्ति उसके मानस पटल पर सदा के लिए अंकित हो गई, ‘‘मानव की मुक्ति के लिए संघर्श करने वालों को बचपन से ही पुस्तकों के प्रति गहरा अनुराग होता है।‘‘ समय आखिर समय होता है, सूरज और चांद की लुखाछिपी के बीच बचपन का दौर निकल गया, बालसुलभ मन पर किशोरमय चंचलता और जिद छा गई।
- और गंगा बहती रही ' जिसमें संजय दत्त थे और जिसका निर्देशन जेपी दत्ता करने वाले थे, मुझे इस फिल्म के कांसेप्ट से आज भी लगाव है, पहला तो इसका शीर्षक जो मिखाइल शोलोखोव के उपन्यास ' क्विट फ्लोज द दोन ' से मेल खाता है, जेपी दत्ता से उस दौर में यह उम्मीद की जा सकती थी, जब उन्होंने ' गुलामी ' के नायक से मैक्सिम गोर्की का जिक्र करवाया था, और राजस्थान और उत्तर प्रदेश के परिवेश के प्रति उनका लगाव, यह सब कुछ एक बेहतर फिल्म की उम्मीद जगाता था।
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